अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी तालीमी मरकज या तहजीबी मरकज
दोस्तो सन 2020 में सर सैयद के चमन मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज अलीगढ़ को यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलने के साथ साथ उसकी तहज़ीब ओ अख़लाक़, इल्म ओ हुनर, मुहब्बतों, रवायतों और सर बुलंद कामयाबियों के भी सौ बरस मुकम्मल हो चुके हैं तो क्यों न इस ख़ास मौक़े पर इल्म के शहर अलीगढ़ और मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े उन पहलुओं पर बात की जाए जो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी आने वाले हर शख़्स के सामने पेश आते हैं मगर अब तक उन पहलुओं पर बहुत कम लिखा और बोला गया है, तो आईये शुरू करते हैं
👉 दोस्तो अलीगढ़ शहर दो हिस्सों में बसा है जिसका पुराना शहर रेलवे लाईन के एक तरफ़ और नया शहर दूसरी तरफ़ है, पुराना शहर घर घर ताले के कारख़ानों व दूसरे उद्योगों के लिए और नया शहर घर घर में प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर और बड़े बड़े अधिकारियों के लिए जाना जाता है, नए शहर की बसावट के लिए यूनिवर्सिटी को बुनियाद कहा जाए तो कुछ ग़लत न होगा, साथ ही यूनिवर्सिटी के पीछे ही एशिया का सबसे तालीम याफ़्ता गावँ धौर्रा मॉफी मौजूद है जो यूनिवर्सिटी का वक़ार जानने का बेहतरीन ज़रिया है.. पुराने अलीगढ़ के साथ जमालपुर और जीवनगढ़ घने मुस्लिम इलाके हैं लेकिन यहां से यूनिवर्सिटी में सबसे कम तादाद में तलबा मिलते हैं लेकिन यहाँ के इंसानों में यूनिवर्सिटी से मोहब्बत का ये आलम है कि उसके लिए अपनी जान की बाज़ी लगाने से भी पीछे नहीं हटते.. भले ही ईन इलाक़ों के लोग यूनिवर्सिटी के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते लेकिन एक बात बहुत अच्छे से जानते हैं कि इस इदारे से उनकी क़ौम के बच्चे तालीम ले कर क़ौम का नाम सारी दुनिया में रौशन करते हैं और कामयाबी की नई इबारतें लिखते हैं इसलिए वो इस यूनिवर्सिटी की हिफ़ाज़त को अपना फ़र्ज़ समझते हैं और हर मुसीबत में यूनिवर्सिटी के साथ मज़बूती से खड़े रहते हैं, बेशक वो इस बात के लिए मुबारकबाद के हक़दार हैं
AMU और बाहरी सियासत 👉 दोस्तो यू आये दिन आपको AMU से जुड़े विवादों की ख़बरें सुनने को मिलती रहती हैं, अलीगढ़ में मौजूद विभिन्न छात्र और राजनीतिक संघठन आये दिन यूनिवर्सिटी के ख़िलाफ़ कोई न कोई मसअला पैदा करते रहते हैं या AMU की किसी मामूली सी बात को बहुत उछाला जाता है.. लेकिन कमाल की बात ये है कि वो तमाम संघठनो के लोग कभी न कभी AMU में दाख़िला लेने की कोशिश में नाकाम हो चुके होते हैं, या हिंदुस्तान में चलने वाले जुगाड़ यहां नहीं चला पाए होते हैं.. वो जब अपनी तालीम, तरबियत और कामयाबी से यूनिवर्सिटी की बराबरी नहीं कर पाते तो उसको साम्प्रदायिक, धार्मिक और न जाने किन किन बहानों से बदनाम करने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं, और यहाँ तक कि AMU में पढ़ने वाले तमाम ग़ैर मुस्लिम तलबा को भी AMU की तरफ़दारी करने के बदले में भला बुरा कहा जाता है.. जबकि सच ये है कि इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले लोगों का सिर्फ़ एक ही मज़हब होता है और उसका नाम है "#अलीग"
AMU और मुहब्बत 👉 ताजमहल हिंदुस्तान की वो इमारत है जिसका ख़्वाब किसी की मुहब्बत से पैदा हुआ था, लेकिन अगर ये कहा जाए कि मुहब्बत को पैदा करने वाली इमारत कौन सी है तो बेशक वो AMU है.. हिंदुस्तान कि सबसे ख़ूबसूरत, साफ़ सुथरी और हरी भरी इस यूनिवर्सिटी को देखते ही किसी दुश्मन को भी इस से मुहब्बत हो जाना लाज़मी है, AMU मुहब्बत का ऐसा गुलदस्ता है जिसकी ख़ुशबू AMU Alumni की शक्ल में दुनिया के हर कोने में महकती है, दुनिया के किसी दूसरे इदारे से वहाँ के तलबा की ऐसी मुहब्बत की मिसाल नहीं मिलती जैसी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की है, यहाँ से पढ़े हुए लोग दुनिया में कहीँ भी मौजूद हों लेकिन वो यूनिवर्सिटी की पल पल की ख़बर रखते हैं, अपने जूनियर्स के लिए फ़िक्रमंद रहते हैं और हर मुमकिन मदद करते हैं, अगर वो अपने वतन वापस आते हैं तो यूनिवर्सिटी घूमने न आयें ऐसा बहुत कम ही होता है..आपको यूनिवर्सिटी की किसी कैंटीन पर बैठे हुए 70,80 बरस तक के ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो कभी यहां से पढ़े थे मगर ज़िंदगी के आख़री पड़ाव पर भी उनका यूनिवर्सिटी में पुराने दोस्तों के साथ चाय पीते हुए गपशप करना नहीं छूटा है, यानी जो एक बार AMU आ गया वो हमेशा को उसी का हो जाता है और ये बेशक़ीमती तासीर ख़ुदा ने इस यूनिवर्सिटी को बख़्शी है
👉 अगर कोई पहली मर्तबा मुहब्बत की दर्सगाह AMU आये और एक से एक हसीन तालिब-ए-इल्म देख कर ये सोचने लगे कि ख़ूबसूरत होना यहाँ दाख़िले की कोई ज़रूरी शर्त तो नहीं है, तो यक़ीनन ये कोई ताअज्जुब की बात न होगी क्योंकि शेरवानी में सजे धजे लड़के और बुर्क़ा,हिजाब और सलीकेदार कपड़ो वाली लड़कियाँ किसी को भी ऐसा सोचने पर मजबूर कर सकती हैं, और ऊपर से यहाँ की तहज़ीब, रवायतें और मेहमान नवाज़ी हर इंसान के दिल में ये ख़्वाहिश पैदा कर देती है कि काश वो भी इस यूनिवर्सिटी के तालिब-ए-इल्म होते... हवस के इस दौर में आज भी आपको अलीगढ़ में ज़िंदगी के ख़्वाब बुनती हुई एक तरफ़ा मुहब्बत और नक़ाब के पीछे छुपी अपने महबूब की सूरत को एक नज़र देख लेने की ख़्वाहिश में मचलती मुहब्बत के हज़ारों किस्से मिल जाएंगे
👉AMU से इस दौर की B.A. जैसी मामूली पढ़ाई कर रहीं लड़कियाँ भी अमेरिका, यूरोप और गल्फ़ में नौकरी कर रहे डॉक्टर, इंजिनियर और मैनेजर जैसे लड़कों से शादी का ख़्वाब देखती हैं और अमूमन उनकी शादियाँ ऐसी ही होती हैं.. यहाँ के तालिब-ए-इल्म ख़िदमत-ए- ख़ल्क़ करने में सबसे आगे रहते हैं, यहाँ हर जोशीला लड़का चीता कहलाता है और हर सीनियर लड़की सबकी अप्पी(बड़ी बहन) कहलाती है.. AMU की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि यहाँ पढ़ने वाले सिर्फ़ किताबों तक महदूद नहीं रहते बल्कि ज़िंदगी के हर फ़लसफ़े पर महारत रखते हैं और कामयाबी की मंज़िल तक कैसे पहुंचना है ये बख़ूबी जानते हैं, कैंपस में हर तरफ किताबें ही किताबें और जीतोड़ महनत से पढ़ाई करते तलबा को देख कर किसी में भी इल्म हासिल करने की ललक जाग उठना लाज़िम है
यूनिवर्सिटी और रवायतें 👉 AMU की रवायतों ने जो नाम कमाया है वो दुनिया की किसी दूसरी यूनिवर्सिटी के हिस्से में नहीं आतीं, आपको AMU में शेरवानी पहने लड़के मिलेंगे तो बुर्क़ा के साथ स्पोर्ट शूज़ पहने लड़कियाँ, धूप के काले चश्मे पहनना पढ़ा लिखा होने की निशानी के तौर पर देखा जाता है, कोई जूनियर अपने सीनियर के सामने खाने पीने का ख़र्च अदा नहीं कर सकता है, कोई स्टूडेंट अपने घर जाए तो उसको स्टेशन तक छोड़ने जाने वाले तमाम दोस्तों को चाय पिलानी होती है, कोई स्टूडेंट स्लीपर और लोवर में हॉस्टल से बाहर नहीं निकल सकता, हर जूनियर स्टूडेंट को अपने सीनियर के सामने अदब से पेश आना होता है और सब सीनियर अपने जूनियर्स की तालीमी व हर दीगर मदद करते हैं। सैयद डे (17 अक्टूबर) इस यूनिवर्सिटी का सबसे ख़ूबसूरत दिन होता है जिसका इंतज़ार तमाम तलबा को साल भर रहता है,जिसे ईद-ए-अलीग भी कहा जाता है, सर सैयद की यौम-ए-पैदाइश के इस दिन पूरी यूनिवर्सिटी दुल्हन की तरह सजाई जाती है, और रात को सर सैयद डे डिनर होता है जिसमें यूनिवर्सिटी के तमाम तलबा और मुलाज़िम शिरकत करते हैं, जो इंसान सर सैयद डे पर अलीगढ़ में शिरकत कर लेता है वो यक़ीनन उन यादों को कभी नहीं भुला पाता क्योंकि उस दिन दुल्हन सी सजी हुई यूनिवर्सिटी की रौनक़ देखने लायक़ होती है और शेरवानियों में सजे, शरारत करते हुए लड़के किसी दूल्हे के दोस्त जैसे महसूस होते हैं और रंग बिरंगे चमचमाते लिबासों में लिपटी हुई लड़कियाँ उन शरारती लड़कों की शरारतों के जवाब उसी अंदाज में देते हुए किसी दुल्हन की सहेलियाँ जैसी लगती हैं..उस दिन यूनिवर्सिटी का कुछ ऐसा समां होता है जैसे किसी गुलशन में हज़ारों काले भँवरे और रंग बिरंगी तितलियाँ एक साथ मँडरा रहे हो.. दिन भर बड़ी बड़ी हस्तियों के यूनिवर्सिटी में प्रोग्राम इस दिन की ख़ूबसूरती में चार चांद लगा रहे होते हैं, दुनिया भर से आये मेहमान, और AMU Alumni यूनिवर्सिटी में घूमते हुए फ़ख्र महसूस कर रहे होते हैं.. जगह जगह मेहमान नवाज़ी की रस्में चलती हैं, यूनिवर्सिटी तराना हर ज़ुबान पर गुनगुनाया जा रहा होता है और जिधर देखो उधर सिर्फ़ ख़ुशनुमाई नज़र आती है.. और सर सैयद डे के डिनर के पास हासिल करने को शहर के लोग क्या क्या कोशिश नहीं करते.. 17 अक्टूबर को मनाया जाने वाला सर सैयद डे आहिस्ता आहिस्ता एक आलमी त्यौहार की शक्ल इख़्तियार करता जा रहा है
चायढाबे और अलीगढ़ 👉 चाय के ढाबों के बिना न तो अलीगढ़ मुकम्मल हो सकता है न उसका कोई ज़िक्र.. भले ही यहां के स्टूडेंट्स शानदार किताबी तालीम यूनिवर्सिटी से हासिल करते हैं लेकिन ज़िंदगी के तमाम ज़ावियों का इल्म उन्हें सड़क किनारे गर्द ओ ग़ुबार के बीच भिनभिनाते हुए मच्छरों के साथ टूटी फूटी कुर्सियों पर बैठ कर चाय की चुस्कियों के दौरान ही हासिल होता है.. आपको यहाँ किसी भी बदहाल से ढाबे पर आलमी मसलों पर गुफ़्तगू करते हुए तलबा मिल जाएंगे, इन्ही ढाबों पर सियासत के नए खिलाड़ी अपनी क़ाबिलियत दिखाते हुए मिल जाएंगे.. कोई कितना भी अमीरज़ादा क्यों न हो लेकिन ख़ुद को इन ढाबों पर बैठने से नहीं रोक पाता, और ये कहा जाता है कि अलीगढ़ में लोग पानी से ज़्यादा चाय पीते हैं
अलीगढ़ की ख़ामियाँ 👉 जिस दिन आपको अलीगढ़ में तारीफ़ और तंज़ के दरमियान फ़र्क़ करना आ गया, दोस्त और दुश्मन की पहचान करनी आ गई तो समझिए आप उस दिन अलीगढ़ को समझ गए हैं.. शायद ही दुनिया की कोई ऐसी हस्ती हो जो इस यूनिवर्सिटी में अपना हुनर दिखाने आई हो और बिना तंज़ सुने वापस गई हो.. भले ही यहाँ के लोग उस हस्ती के हुनर में उसके बराबर इल्म और शौहरत न रखते हो लेकिन वो उसको उसके हुनर में वो ख़ामी तलाश कर बता देंगे जो उसको दुनिया में कहीं न बताई गई हो मगर ख़ुद को मुकम्मल न समझने वालों के लिए ये बात बहुत फ़ायदे की भी है.. वैसे तो अलीगढ़ दोस्तों का शहर है और दुनिया में हर जगह सबके दोस्त और दुश्मन होते हैं लेकिन अलीगढ़ की ख़राबी ये है कि यहाँ दुश्मन भी दोस्त की शक्ल इख़्तियार किये रहते हैं जिस से उनको पहचानना बहुत मुश्किल होता है और वो बड़ी मुहब्बत से आपकी जड़ें काट रहे होते हैं
यूनिवर्सिटी मुलाज़िम 👉 आपको अगर शेरवानी पहन कर साईकल से आते हुए मुलाज़िम देखने हों या 5, 10 रुपये के भुने चने दिन भर एक एक दाना कर के खाते हुए क्लर्क देखने हों तो आप AMU आ सकते हैं.. इस यूनिवर्सिटी के ज़्यादातर मुलाज़िम दो काम ज़रूर करते हैं जिसमें एक है अपना रुतबा, अपनी ताक़त दिखाना और उसको लगातार बढ़ाते रहने की कोशिश करना, और दूसरा है अपनी नौकरी के आख़िरी दिन तक अपने फ़ील्ड में नई ऊंचाइयां छूते रहने की कोशिश करना... ये दोनों काम यहाँ के तलबा भी करते हैं इसका फ़ायदा ये होता है कि एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में तमाम लोग कुछ न कुछ बहतर हासिल करते रहते हैं लेकिन इसका नुक़सान ये होता है कि किसी से पिछड़ने पर इस से बहुत से लोगों के दिलों में हसद भी पैदा होती है
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